अगर दूसरों को दुश्मन समझेंगे तो दुनिया बहुत छोटी हो जाती है, लेकिन अगर हम दूसरों को अपना मित्र समझते हैं तो इतने लोग हमारे अपने हो जाते हैं कि पूरी जिन्दगी के दिन भी उन सबसे मिलने के लिए कम पड़ जाएं।


जब हम इस दुनिया में आते हैं तो हम किसी को न हीं जानते। धीरे—धीरे जब हम बड़े होते हैं तो हम इस दुनिया को पहचानते हैं और लोगों को अपना मानते हैं। इस दुनिया में हमारी सबसे पहली पहचान 'मॉं' से होती है, उसके बाद पिता से और उसके बाद अन्य सगे—संबंधियों से।

रिश्तों का यह सिलसिला यहीं पर समाप्त नहीं होता है। जैसे—जैसे हम बड़े होते हैं, हमारे रिश्ते समाज और पास—पड़ोस के लोगों से बनने लगते हैं। जिनसे हमारा खून का रिश्ता होता है, वह तो हमारे परिजन होते हैं लेकिन जिनसे हमारा रक्तवर्ण संबंध नहीं होता, वह भी ​हमारे रिश्तेदार बन जाते हैं, हमारे दिल के करीब आ जाते हैं और ऐसे रिश्तों को नाम दिया जाता है — दोस्ती।

दोस्ती का स्तर बहुत छोटा और बहुत व्यापक हो सकता है। इसका स्तर व्यक्ति की अपनी सोच, उसके कार्य क्षेत्र और मिलन भावना पर निर्भर करता है। कुछ लोग घर घुसरी प्रवृत्ति के होते हैं, उनकी दुनिया केवल घर से घर तक ही होती है। बहुत हुआ तो वह अपने आस—पास के लोगों से परिचय कर लेते हैं और ज्यादा हुआ तो एक दो बाहरी शहर के मित्र बना लेते हैं, बस।

दोस्त बनाएं और अपनी दुनिया बढ़ाएं।
अगर आप चाहते हैं कि अधिक से अधिक लोग आपको जानें, अधिक से अधिक लोग आपके बारे में बात करें तो आपको अपने आसपास के लोगों से ही नहीं अपितु अधिक से अधिक लोगों से मित्रता करनी होगी।

मित्रता का उद्देश्य केवल कुछ प्राप्त करना नहीं होता, अपितु एक ऐसा आत्मीय सर्कल बनाना होता है जहां अधिक से अधिक लोग आपको जानते हों, ​आपकी कद्र करते हों और आपको अपना मानते हों। दोस्ती करने के लिए कोई सीमाएं तय नहीं हैं, आप अपने पड़ोस से लेकर हर जगह, जहां आप जाते हैं, हर जगह सबको दोस्त बना सकते हैं। जितने आपके दोस्त होंगे, उतनी आपकी पहचान होगी।

प्रेमपूर्ण व्यवहार करें 
मित्र बनाने के लिए जरूरी नहीं है कि आप सभी को जानते हों या उनकेे किसी काम आते हों। हॉं, यह सही है कि आज के समय में अधिकांश संबंधों की जड़ स्वार्थ ही होती है परंतु यह भी उतना ही सही है कि निस्वार्थ भाव से भी मित्रता की जाती है।

मित्रता करने के लिए आपको किसी प्रकार का मिशन शुरू करने की जरूरत नहीं है। बस, जिस किसी से आप मिलें, उसके साथ प्यार से पेश आएं। भले ही आप ओहदे में, सामाजिक प्रतिष्ठा में सबसे बड़े हों, परंतु आप अहम् का त्याग कर सबके साथ प्यार से पेश आएं। आप देखेंगे कि आपके प्रशंसक और मित्रों की संख्या स्वत: ही बढ़ने लगेगी।

मानवीय व्यवहार रखें 
मित्रता का अर्थ केवल यह नहीं है कि आप केवल इंसान से ही मित्रता करें, उसके साथ ही प्रेमभाव और आत्मीयता रखें। मानव को प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ कृति माना जाता है, अतएव मानवीयता आपके दिल में होनी चाहिए।

जब आप किसी मूक पशु, पक्षी या प्राणी को कष्ट में देखें तो उसकी हर संभव सहायता कर उसे कष्ट से मुक्ति दिलाने का प्रयास करें। प्राणीमात्र के प्रति आत्मीयता एवं दयाभाव रखना ही मानवता की पहचान होती है। मानव होने के नाते हमारा दायित्व है कि हम इंसानों के साथ—साथ प्रत्येक जीवधारी के साथ दयाभाव रखें। किसी को अनावश्यक रूप से कष्ट न दें।

यह लेखक के निजी विचार हैं, इनसे सहमत होना या न होना आपके विवेक पर निर्भर करता है। 

मुस्कुराएं एवं क्षमा दान करें 
दुनिया की रंगत का आधार मुस्कान, चाहे वह इंसान की हो, पुष्प—लताओं की हो या किसी और की। जिस प्रकार से बाग में मुस्कुराते हुए लता एवं पुष्प सुशोभित होकर बाग की रंगत, रौनक बढ़ाते हैं उसी प्रकार से मानव संसार के बगीचे की रौनक के लिए मुस्कान होना जरूरी है। इसलिए हमेशा मुस्कुराते रहें और दूसरों को खुश रखने का प्रयास करें।

जब कोई व्यक्ति त्रुटिवश ऐसा कृत्य कर देता है जिससे आपको क्षोभ या कष्ट हुआ है और उस व्यक्ति को अपनी गलती का अहसास है वह अपने पर शर्मिन्दा है तो आपको उसे क्षमा कर देना चाहिए। इससे आपको शांति मिलेगी एवं उसे भी ग्लानि का अनुभव नहीं होगा। क्षमा दान और खुशियां बांटने में कोई व्यय नहीं होता। इतना तो आप कर ही सकते हैं।