लोग झूठ कहते हैं कि चेहरे से प्यार होता है, मुझे तो उसका चेहरा भी नहीं दिखा। काश! एक बार हवा विपरीत दिशा में चली होती और उसका चेहरा मैं देख पाती।


पवन के झोके मन्द—मन्द मुस्कुरा रहे थे। आसमान लगभग स्वच्छ ही था। दूर क्षैतिज में अवश्य कुछ दुग्धरूपी बादल दिख रहे थे। नन्दिनी तीव्र वेग से अपनी बालकनी में इधर से उधर टहल रही थी। शायद कोई जिज्ञासा या बैचेनी उसके दिल में थी जो उसकी मुखाकृति और चहल कदमी से स्पष्ट झलक रही थी। 

टलहते—टहलते जब वह थक गई तो वह बालकनी से सटे अपने कमरे में जाकर कुर्सी पर बैठ गई और एक हाथ के सहारे अपने सिर को टिकाकर आंखें बन्द कर लीं। अचानक से मोबाइल एक नोटिफिकेशन आया, नोटिफिकेशन ध्वनि को सुनकर उसकी तंद्रा टूटी। शायद किसी का मैसेज आया होगा, यह सोचकर उसने नजरअंदाज किया और फिर से आंखें बन्द कर लीं। चंद लम्हे के अंतराल से फिर एक नोटिफिकेशन की प्रतिध्वनि उसके कान में पड़ी। झल्लाकर उसने फोन उठा लिया और यह देखने के लिए, कि कौन उसे डिस्टर्ब कर रहा है, त्वरित रूप से मोबाइल स्क्रीन पर अपने अंगुलियॉं घुमाकर फोन को अनलॉक किया।

नन्दिनी ने तय ​कर लिया था कि अगर किसी अजनबी का संदेश हुआ तो वह अवश्य ही उसे ब्लॉक कर देगी। यूं तो वह खुद ही एक अजनबी के ही ख्याल में खोई थी परंतु SMS नोटिफिकेशन की ध्वनि उसके ध्यान को भंग कर रही थी। जब फोन अनलॉक हुआ, तो स्क्रीन पर लिखा था — 2 Unread Messages. नंबर कोई अननॉन ही था। नन्दिनी ने मैसेज पर क्लिक किया तो पता चला कि वह संदेश मोबाइल से नहीं अपितु किसी ONLINE TEXT MESSAGING सेवा के जरिए भेजे गए थे। मैसेज के साथ कोई नाम, कोई पहचान नहीं लिखी थी फिर भी नन्दिनी को समझ आ गया कि संदेश किसने भेजा है।

पहला मैसेज था — ''देवी जी, माफी चाहूॅंगा कि मैंने बिना अनुमति के आपका अंगवस्त्र (दुपट्टा) ले लिया, परंतु उस समय मेरे पास कोई विकल्प नहीं था।''

दूसरा मैसेज था — ''आपका अंगवस्त्र मैंने आपके कॉलेज के पते पर आपके नाम से भिजवा दिया है, वह आपको शीघ्र ही प्राप्त हो जाएगा।''

संदेश पढ़ने पर उसकी जिज्ञासा और भी तीव्र हो गई थी कि वह आखिर कौन हो सकता है .....। संदेश प्राप्त होने पर न केवल जिज्ञासा ही बढ़ी अपितु नन्दिनी के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान भी उभर आई थी, शायद उसे विश्वास होने लगा था कि अजनबी से मुलाकात जरूर हो सकती है। लेकिन दूसरे ही पल उसका चेहरा मुरझा गया क्योंकि उसके मन में यह विचार प्रकट हुआ कि आखिर उसने ONLINE TEXT MESSAGING का सहारा क्यों लिया। अगर उसे मिलना ही होता तो वह अपनी पहचान क्यों छिपाता।

यह एक काल्पनिक कहानी है, इसका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं है। यदि यह किसी के जीवन से मिलान होती है तो उसे मात्र एक संयोग माना जावे।

दो दिन पहले
कॉलेज खत्म होने के बाद नन्दिनी वापिस अपने घर लौट रही थी। आज वह पैदल थी क्योंकि स्कूटी में कोई खराबी आ गई थी जिसे वह कॉलेज आते समय ही गैरेज में देकर आई थी। वह जब गैरेज पहुॅंची तो कॉफी देर हो चुकी थी। गनीमत यह थी कि गैरेज का मालिक अभी भी नन्दिनी के इंतजार में रूका हुआ था। नन्दिनी ने बिल का भुगतान करके अपनी स्कूटी को स्टार्ट किया और अपने घर का रास्ता लिया।

शहर से थोड़ी दूर पर (30KM) उसका गॉंव था। गॉंव से ही वह हर रोज आया—जाया करती थी। सर्दियों में आम तौर पर 05 बजे ही संध्या हो जाती है परंतु आज तो 06 बज चुके थे। घर पर मम्मी—पापा नाराज न हों इसलिए वह तीव्र वेग से स्कूटी को भगाए जा रही थी। अचानक से उसने देखा कि सड़क पर कुछ लोग खड़े थे, जिसकी वजह से सड़क पूरी सड़क जाम हो गई। क्रॉस करना मुश्किल था परिणामत: नन्दिनी को मजबूरन स्कूटी धीमी करनी पड़ी।

........ निरंतर जारी